मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
सर-ए-आईना मेरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है
मैं किसी के दस्त-ए-तलब में हूँ तो किसी के हर्फ़-ए-दुआ में हूँ
मैं नसीब हूँ किसी और का मुझे माँगता कोई और है
तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे दोस्तों का पता न था
तेरी दास्ताँ कोई और थी मेरा वाक़या कोई और है..
Post a Comment