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क्यों सुकूँ मिलता नही इस ज़माने में...




















लुट गई दुनिया मुहब्ब्त के फ़साने में,
हम तमाशा बन गये जुल्मी ज़माने में,

पूछ ही लेता हाल-ए-दिल तो सुकूँ मिलता,
वो कंही मशरूफ था फिर दिल लगाने में,

गम में डूबा आज कोई दिल-जला पूछे,
क्यों सुकूँ मिलता नही इस ज़माने में...

शर्त ये है कोई बाँहों में सम्भाले मुझको..

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