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फिर आज कोई ग़ज़ल तेरे नाम हो जाये...















फिर आज कोई ग़ज़ल तेरे नाम हो जाये
आज कहीं लिखते-लिखते शाम न हो जाये

कर रहा हूँ इंतज़ार तेरे इजहार-ए-मोहब्बत का
इसी इंतजार में मेरी ज़िन्दगी तमाम न हो जाये

नहीं लेता तेरा नाम सर-ए-आम इस डर से
कहीं  नाम  तेरा  बदनाम  न  हो  जाये

माँगता हूँ दुआ जब भी तु याद आता है
के जुदाई मेरे प्यार की अंजाम न हो जाये

सोंचता हूँ, डरता हूँ अक्सर तन्हाई में
उसके दिल में किसी और का मक़ाम न हो जाये....

गीले बालों को उसने झटका यूँ सलीके से...

टकरा ही गई मेरी नज़र उनकी नज़र से..


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