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शाम से आँख में नमीं सी है..














शाम से आँख में नमीं सी है
आज फिर आपकी कमी सी है

दफ़न कर दो हमें के साँस मिले
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
उस की आदत भी आदमी सी है

शाम से आँख में नमीं सी है
आज फिर आपकी कमी सी है..

ज़िन्दगी इक शमा थी पिघलती रही..

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