हुस्न पर जब कभी शबाब आया..
हुस्न पर जब कभी शबाब आया
सारी दुनिया में इंक़लाब आया
मेरा ख़त ही जो तूने लौटाया
लोग समझे तेरा जवाब आया
उम्र तिफली में जब ये आलम है
मार डालोगे जब शबाब आया
तेरी महफ़िल में सुकून मिलता है
इसलिए मैं भी बार बार आया
तू गुज़ारेगी ज़िंदगी कैसे
सोच कर फिर से मैं चला आया
ग़म की निस्बत न पूछिए हमसे
अपने हिस्से में बेहिसाब आया..
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