मोहब्बत की मिन्नतें
तुम्हारी आँखों में अपने प्यार की चाँदनी बसा लूँ
ऑंखें बंद करो तो मुझे ही पाओ
सितारों की महफ़िल तुम्हारे लिए सजाऊँ
नज्में और ग़ज़लें फिर हमारी प्यार की हो
जुल्फें अपनी तुम पर बिछाऊँ इस क़दर
सूरज भी हैरां कि उसकी धुप का असर न हो
तेरी बेपर्दा निगाहों का निशाना बन के..
परवाना भी शमा पे जलना छोड़ दे
मोहब्बत देख मेरी उसकी शिद्दत में ताक़त न हो
मेरे लबों का शहद छुए इस तरह
किसी और जायके का फिर लुत्फ़ न हो
एक ही ख्वाब बस एक ख्वाहिश
हर सेहर तुमसे हबीब हर शाम तुम्हारी आगोश में हो
मेरी मोहब्बत की मिन्नतें सुन ले ऐ मेरे रक़ीब
फिर किसी और दुआ पे तेरी नज़र न हो..
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