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टकरा ही गई मेरी नज़र उनकी नज़र से..












टकरा ही गई मेरी नज़र उनकी नज़र से
धोना ही पड़ा हाथ मुझे कल्ब-व-जिगर से

इज़हार-ए-मोहब्बत ना किया बस इसी डर से
ऐसा ना हो गिर जाऊँ कहीं उनकी नज़र से

ऐ जौक-ए-तलब जोश-ए-जुनूँ ये तो बता दे
जाना है कहाँ और हम आये हैं किधर से

'मोहसिन' अब आया है जुनूँ जोश पे अपना
हँसता है ज़माना मैं गुज़रता हूँ जिधर से..

आज रूह को रूह में समां जाने दो..
ये बारिशें भी तुम सी हैं..

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