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याद तेरी सताने लगी है मुझे..














याद तुझको ही दिन रात करने लगा
ठंडी आहें सुबह-शाम भरने लगा

मैं दीवाना शब-ए-वस्ल का जानेमन
तुझको बाहों में भरने को मारने लगा

बेताबी दिल की कुछ कम हो इस के लिए
तेरी बातें दीवारों से करने लगा

याद तेरी सताने लगी है मुझे
उठ के रातों को चुपके से रोने लगा

ग़म तेरा घेरे रहने लगा है मुझे
सीने में दर्द फिर से सताने लगा

तेरी बाहों का सुख चैन ओ जानेमन
फिर से पाने को मैं होश खोने लगा

मिल के उलझा ले फिर गेसुओं में मुझे
अब जुदाई से तेरी मैं डरने लगा...

फिर आज कोई ग़ज़ल तेरे नाम हो जाये...

टकरा ही गई मेरी नज़र उनकी नज़र से..

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