कभी कभी
होती है तेरे नाम से वहशत कभी कभी
बरहम हुई है यूँ भी तबियत कभी कभी
तेरे करीब रहकर भी दिल मुतमइन न था
गुज़री है मुझ पे ये भी क़यामत कभी कभी
कुछ अपना होश था न तुम्हारा खयाल था
यूँ भी गुज़र गई शब-ए -फुरक़त कभी कभी
ऐ दोस्त हमने तर्क-ए -मोहब्बत के बावजूद
महसूस की है तेरी ज़रुरत कभी कभी...
ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है, मेरा भी है..
इतनी मुद्दत बाद मिले हो...
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