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ज़िन्दगी इक शमा थी पिघलती रही..















चाँदनी रात चुपके से ढलती रही
दिल तड़पता रहा, रूह मचलती रही

आँख से लाख दरिया बहाए मगर
ना बुझी आग सीने में जलती रही

हमने सोंचा था शायद सकून मिल सके
इक ख्वाहिश थी जो दिल में पलती रही

दोस्ती , दिल्लगी, शौख-ए-आवारगी
वक़्त पड़ने पे हर शय बदलती रही

राह-ए-दुश्वार में छोड़ कर सब चले
इक तेरी याद थी साथ चलती रही

देस-परदेस, तारीख़ कटे रोज़-व-शब
ज़िन्दगी इक शमा थी पिघलती रही..
तो मैं याद आऊँगा...

मोहब्बत मोहब्बत..

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